देश
में प्राचीन काल से रही है न्याय देने की परम्परा
समानता, पारदर्शिता, विनम्रता और सबको समय पर न्याय दिलाना ही है
न्यायपालिका की मूल आत्मा
मुख्यमंत्री
डॉ. यादव ने इन्दौर में किया विधि विशेषज्ञों की अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का
शुभारंभ
उच्चतम
न्यायलय के न्यायमूर्तिगणों और विधि-विशेषज्ञों ने रखे अपने विचार
जबलपुर,
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि न्याय
पाना देश के हर नागरिक का मौलिक, बुनियादी, मानवीय, नागरिक
और संवैधानिक अधिकार है। उन्होंने कहा कि भारत की संघीय शासन व्यवस्था का आधार ही
सबके जीवन, भोजन और स्वास्थ्य के अधिकारों की समान रूप से
न्यायपूर्ण रक्षा करना है। उन्होंने कहा कि लोक कल्याणकारी राज्य का पहला दायित्व
है कि देश का कोई भी व्यक्ति न्याय पाने से वंचित न रहे। न्याय और सुशासन न केवल
राष्ट्र और समाज को मजबूत करते हैं,
बल्कि शासन व्यवस्था को जवाबदेह भी
बनाते हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने कहा कि आज का नया दौर न्याय का पथ गौरवान्वित
करने वाला है। उच्चतम न्यायालय द्वारा बीते कुछ सालों में दिए गए कई निर्णयों ने
देश को नई दिशा दी है। इससे न्याय व्यवस्था पर हमारी आस्था को और बल मिला है।
मुख्यमंत्री डॉ यादव ने कहा कि युग बदले, दौर बदले, परंतु
न्याय की आत्मा हमेशा वही रहेगी। समानता, पारदर्शिता, विनम्रता
और सबको समय पर न्याय दिलाना ही न्यायपालिका की मूल आत्मा रही है और आगे भी
रहेंगी। मुख्यमंत्री ने कहा है हमारे देश में न्याय की प्राचीन परंपरा रही है।
न्याय देने की स्थापित व्यवस्था को और बेहतर बनाना हमारा लक्ष्य है। मुख्यमंत्री
ने सुप्रीम कोर्ट के निर्णय की सराहना करते हुए कहा कि अब तो न्याय की देवी की
आंखों की पट्ठी भी खोल दी गई है। इसका आशय यह है कि अब न्याय की देवी खुली आंखों
से न्याय कर सकेंगी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव शनिवार को इंदौर में आयोजित
"इवोल्विंग होराइजन्स: नेविगेटिंग कॉम्प्लेक्सिटी एंड इनोवेशन इन कमर्शियल
एंड आर्बिट्रेशन लॉ इन द डिजिटल वर्ल्ड" विषय पर आयोजित विधि विशेषज्ञों की
अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी (इंटरनेशनल कॉन्फ्रेंस) के शुभारंभ सत्र को संबोधित कर
रहे थे। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने उच्चतम न्यायलय के न्यायमूर्तिगणों के साथ दीप
प्रज्ज्वलन कर इस संगोष्ठी का शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री
डॉ. यादव ने इस अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए इंदौर पधारे उच्चतम न्यायालय के
सभी सम्मानीय न्यायमूर्तियों और देश-विदेश से आए विधि विशेषज्ञों, न्यायविदों
तथा विद्यार्थियों का आभार जताते हुए कहा कि देश के सबसे स्वच्छतम शहर में न्याय
प्रणाली के मंथन पर ऐसी विद्वत सभाओं का आयोजन हमें नई उम्मीद देता है, साथ
ही और बेहतर करने की प्रेरणा भी देता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि मध्यप्रदेश सरकार
न्याय प्रणाली को और अधिक सुलभ, सरल और प्रभावी बनाने के लिए निरंतर कदम उठा
रही है। राज्य में प्रादेशिक और जिला स्तर के न्यायालयों की सुदृढ़ स्थापना के
साथ-साथ मध्यप्रदेश में ग्राम न्यायालयों की व्यवस्था भी की गई है। मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने भारतीय न्याय परम्परा
का उल्लेख करते हुए कहा कि न्याय हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। हम सम्राट
वीर विक्रमादित्य को कैसे भूल सकते हैं, जिन्होंने अपने
बाल्यकाल से ही तत्समय भारत देश में न्याय और सुशासन की व्यवस्था का सूत्रपात किया
था। हम उन्हीं के बताए मार्ग पर चल रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज देश में
कानून के क्षेत्र में अनेक नवाचार हो रहे हैं, जिससे नागरिकों
को अधिक अधिकार मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि अधिकारों के साथ-साथ दायित्वों का
पालन भी आवश्यक है उन्होंने कहा कि न्याय प्रणाली जितनी सहज और सरल होगी, नागरिक
को उतनी ही जल्दी न्याय मिलेगा। हमारी सरकार का प्रयास है कि प्रत्येक नागरिक को
सुगमता से न्याय मिले और उसकी आस्था न्यायिक व्यवस्था पर सदैव बनी रहे।
मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने विशेष ज़ोर देकर कहा
कि आज के तेज़ी से विकसित होते तकनीकी युग में, न्यायपालिका को
निरंतर मूल्यांकन और अनुकूलन उपायों पर काम करना चाहिए, ताकि
यह सुनिश्चित हो सके कि न्याय प्रदान करना नवाचार में बाधा डाले बिना निष्पक्ष और
पारदर्शी बना रहे। इससे भारत की अर्थव्यवस्था का विकास हो सके और साथ ही व्यापार
करने में आसानी भी सुनिश्चित हो। उच्चतम न्यायालय
के न्यायाधिपति न्यायमूर्ति श्री जितेन्द्र कुमार माहेश्वरी ने कहा कि न्यायपालिका
का लक्ष्य कानून का पुनर्निर्माण करना नहीं है, बल्कि निष्पक्ष
प्रतिस्पर्धा के विचार को सीमित किए बिना निष्पक्षता की सीमाओं का विस्तार करना
है। उन्होंने आगे कहा कि आधुनिक अर्थव्यवस्था में, डेटा पर
नियंत्रण केवल फर्मों या कंपनियों के स्वामित्व से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है, और
इसलिए, आर्थिक विकास को बाधित किए बिना पारदर्शिता और
निष्पक्षता सुनिश्चित की जानी चाहिए। उच्चतम न्यायालय
के न्यायाधिपति न्यायमूर्ति श्री अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने इस बात पर प्रकाश डाला
कि कानूनी पेशा तकनीकी प्रगति का अपवाद नहीं रह सकता। प्रौद्योगिकी-संचालित और
स्वचालित अनुबंधों के उदय के साथ,
न्यायपालिका को यह सुनिश्चित करना
चाहिए कि तकनीकी विकास के कारण न्याय से समझौता न हो और इन प्रगति के साथ विकसित
होना चाहिए। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधिपति न्यायमूर्ति
श्री राजेश बिंदल ने कहा कि जैसे-जैसे व्यापार का विस्तार होता है, विवाद
स्वाभाविक रूप से बढ़ते हैं और इसका समाधान न्यायपालिका में ही निहित है। चूँकि
भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है, इसलिए
हमारी मानसिकता में बदलाव लाने और सभी हितधारकों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान करने
की तत्काल आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस उपयोगी तो है, लेकिन
यह पेटेंट और पंजीकरण जैसे क्षेत्रों में नई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधिपति न्यायमूर्ति
श्री अरविंद कुमार ने कहा कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का केवल एक भागीदार ही
नहीं, बल्कि एक निर्माता भी है। न्याय से समझौता किए
बिना, व्यापार में सुगमता और नवाचार को साथ-साथ आगे
बढ़ना चाहिए। उन्होंने न्यायनिर्णयन से सहयोग और मध्यस्थता से नवाचार की ओर बदलाव
पर ज़ोर दिया और कानूनी बिरादरी के लिए तदनुसार अनुकूलन की आवश्यकता पर बल दिया। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति
न्यायमूर्ति श्री संजीव सचदेवा ने "विकसित होते क्षितिज: डिजिटल दुनिया में
वाणिज्यिक और मध्यस्थता कानून में जटिलता और नवाचार को नेविगेट करना" विषय पर
अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और उच्चतम न्यायालय के
न्यायाधिपति न्यायमूर्ति श्री जे.के. माहेश्वरी, सर्वोच्च
न्यायालय के न्यायाधीशगण और अन्य न्यायाधीशगणों और विदेशी प्रतिनिधियों का स्वागत
किया। उन्होंने पारदर्शिता, दक्षता और कानून के शासन को बनाए रखते हुए
तकनीकी परिवर्तन के अनुकूल होने में न्यायपालिका की भूमिका पर बल दिया। उन्होंने
इस बात पर भी जोर दिया कि मध्यप्रदेश कानूनी और तकनीकी नवाचार का केंद्र बनने के
लिए अच्छी स्थिति में है, जो वाणिज्य एवं व्यापार करने में आसानी के
राष्ट्रीय लक्ष्य के बेहद अनुरूप है।
भारत के सॉलिसिटर जनरल श्री तुषार मेहता ने
अपने संबोधन में कहा कि कानूनों को तकनीकी प्रगति के अधीन हुए बिना उनके साथ
विकसित होना चाहिए। मध्यस्थ दायित्व और एआई-सहायता प्राप्त याचिकाओं के प्रारूपण
जैसे उभरते मुद्दों पर सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने इस
संगोष्ठी की सराहना ऐसी उभरती चुनौतियों पर विचार-विमर्श के लिए एक महत्वपूर्ण
अंतर्राष्ट्रीय पहल के रूप में की। डेनिश पेटेंट
एवं ट्रेडमार्क कार्यालय की उप महानिदेशक सुश्री मारिया स्कोउ ने इस बात पर विशेष
जोर दिया कि भारत और डेनमार्क के बीच वाणिज्यिक और मध्यस्थता संबंधी मामलों में
परस्पर सहयोग अत्यंत महत्वपूर्ण है,
क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्थाएं बड़ी
तेज़ी से आपस में जुड़ती जा रही हैं। इस अवसर पर मध्य
प्रदेश उच्च न्यायालय की तीन नई तकनीकी पहलों का भी गणमान्य व्यक्तियों द्वारा
उद्घाटन किया गया। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय, इंदौर पीठ के
प्रशासनिक न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री विवेक रूसिया द्वारा सभी अतिथियों का परिचय
कराया गया। संगोष्ठी में ऑनलाइन इंटर्नशिप फॉर्म जमा करने का सॉफ्टवेयर, केस
डायरी की ऑनलाइन संचार प्रणाली, और समझौता योग्य अपराधों के लिए "समाधान
आपके द्वार" के बारे में बताया गया। संगोष्ठी के शुभारंभ सत्र के समापन पर
मध्यप्रदेश राज्य न्यायिक अकादमी,
जबलपुर के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री
विवेक अग्रवाल द्वारा सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद एवं आभार ज्ञापित
किया गया। इंदौर में दो दिवसीय यह अंतर्राष्ट्रीय
संगोष्ठी देश के प्रतिष्ठित न्यायाधीशों, कानूनी
विद्वानों और वैश्विक विशेषज्ञों को डिजिटल परिवर्तन से उभरने वाली कानूनी
चुनौतियों पर विचार-विमर्श के लिए आयोजित की गई है। संगोष्ठी के तकनीकी सत्र में
प्रौद्योगिकी के युग में वाणिज्यिक कानून, इंटरनेट मध्यस्थ
दायित्व, ऑनलाइन प्रतिस्पर्धा, भारत-यूरोपीय
संघ मध्यस्थता परिप्रेक्ष्य, ऑनलाइन अवैधताओं का आपराधिक प्रवर्तन और
बौद्धिक सम्पदा एवं नवाचार के बीच संबंध सहित महत्वपूर्ण विषयों को शामिल किया
गया। यह संगोष्ठी न्यायिक क्षमता को मजबूत करने और डिजिटल युग में कानूनी
उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए उच्च न्यायालय की प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है।
यह आयोजन तेजी से विकसित हो रहे वाणिज्यिक परिदृश्य की आवश्यकताओं के प्रति
उत्तरदायी भविष्य के लिए तैयार न्याय प्रणाली के निर्माण की दिशा में एक
महत्वपूर्ण कदम है। संगोष्ठी में देश-विदेश से आए विधि विशेषज्ञों, न्यायविदों, न्यायिक
अधिकारियों और विधि छात्रों ने सहभागिता की। संगोष्ठी में न्यायिक नवाचार, विधिक
सुधार और डिजिटल न्याय प्रणाली सहित कमर्शियल लॉ एंड आर्बिट्रेशन पर भी
विचार-विमर्श किया गया। शनिवार, 11 अक्टूबर और रविवार, 12
अक्टूबर को आयोजित इस दो दिवसीय संगोष्ठी में कुल छह तकनीकी सत्र होंगे।